भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

इस स्वंतत्र देश म्हं / रामफल सिंह 'जख्मी'

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

इस स्वंतत्र देश म्हं, हो देश म्हं
क्यूं भुगतै बीर गुलामी
 
जब लड़की का जन्म होवै, घर मोहल्ले म्हं मातम छावै क्यूं
दादा-दादी मां अर बाबू, देख कै नाक चढ़ावैं क्यूं
माल बिगाना कह कै नै, कुरड़ी का धन बतलावैं क्यूं
चलैं औरों के आदेश म्हं, हो आदेश म्हं
होर्या म्हारी आंख्यां के साहमी
इस स्वतंत्र देश म्हं
 
दारू की बोतल के ऊपर, फोटू छपै लुगाई की
धर्मशाळा होटल के ऊपर, फोटू छपै लुगाई की
बुरे काम टोटल के ऊपर, फोटू छपै लुगाई की
रहै आठों पहर क्लेश म्हं हो क्लेश म्हं
ये कवि भी करैं बदनामी
इस स्वतंत्र देश म्हं
 
तेतीस परसेंट आरक्षण पे, ना कोई नेता बोल रह्या
कुर्सी को बचाणे खातर, अमृत म्हं विष घोल रह्या
कोर्ट म्हं भी लिए तराजू, पैसे म्हं न्याय तोल रह्या
वो जिक्र नही लवालेश म्हं, हो लवालेश म्हं
जिनां डोर राज की थामी
इस स्वतंत्र देश म्हं
 
सांगी, भजनी, गीतकार नै भी, ढाए जुल्म छोरियां पै
त्रिया विष की बेल कही, न्यू कमाए जुल्म छोरियां पै
मर्द गिर्या ज्यादा, दीखै कम, पाए जुल्म छोरियां पै
‘रामफल सिंह’ नए भेष म्हं, हो नए भेष म्हं
हो री आज नीलामी
इस स्वंतन्त्र देश म्हं