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उजड़े पनघट / रामेश्वर काम्बोज ‘हिमांशु’

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1
हेरते तट
नदी कब रुकी है
उफनी भागी।
2
नदियाँ सूखीं
उजड़े पनघट
गलियाँ मौन 1
3
नहाने आते
जब चाँद -सितारे
तट हर्षाते।
4
निर्मल जल
मिल गया कीच में
ख़ुद खो गया।
5
नेह के नीर!
हर लेना प्रिय की
तू सारी पीर।
6
पहाड़ी नदी-
बलखाती कमर
किसी मुग्धा की।
7
प्यास बुझेगी
मरुथल में कैसे
साथ न तुम !
8
तुम्हारा प्यार-
कल-कल करती
ज्यों जलधार।
9
दर्द की नदी
पार करते बीती
पूरी ही सदी।
10
दुःख- नदी के
पार अगर जाना
सीखो मुस्काना।
11
दुःख की नदी
डूबकर पार की
तैर न सके।
12
नदी का तीर
हुआ निर्मल नीर
हर ली पीर ।
13
लहरें उठीं
तर हो गई धारा
भीगे किनारे।
14
शापित तट
अघा गए पीकर
जीवन-घट।
15
शीतल धारा
चूमती ही जा रही
प्यासा किनारा ।
16
तट की बाहें
थामे हुए गोद में
शिशु-तरंगें।