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उजाले की रात / रूपम मिश्र

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उजाले से भरी रात है
जहाँ तारिकाओं के सहन में तुम शरद के डहर भरे अजोर की तरह उतरे हो
स्मृति ने हँसकर आगत - विगत पर गुलाबी कैनवास डाल दिया था
दुख का खटका लगा, मन मिठास से भर गया
जेठ की तपती रात अचानक सेहलावन लगने लगी

उसी रात का उजाला पकड़ बहुत दूर निकल आई हूँ
जबकि उजाले के चारों तरफ़, बस, अन्धेरा ही अन्धेरा दिख रहा है
और अन्धेरे से मुझे बहुत डर लगता है
तुम मुझे आवाज़ देते रहना
गर्म आँसुओं की नदी में रह-रहकर डूबने लगती हूँ
ठीक उसी पल जब तुम पराये लगते हो
तुम जानते हो न! परायेपन से मेरी आत्मा बहुत करकती है

तुम्हें याद करते ही मन महकते फूलों से भर जाना था
पर चित्त है कि एक गोदामिल पीड़ा से चिलक उठता है

कभी यहीं कहीं चलते हुए हम थकेंगे भी, साथी !
तब भी एक छुटपन की साध
या अलग़रज़ी में कही बात की तरह ही सही

तुम मुझे अपना कहते रहना
वसन्त चला भी जाए तो प्रेम की आस से जीवन बचा रहेगा

अकेलापन बहुत सह सकती हूँ
बस, यक़ीन खत्म न होने पाए कि तुम जहाँ भी हो मुझे याद करते हो ।

रात को खिली चमेली अभी तक महक रही है और मन है कि रूमानी होता ही नहीं,
मैं हमेशा कुछ प्रश्नों को लिए तुम्हारी ओर देखती हूँ ।

तुम हो कि जवाब से बचने के लिए रूमानियत की रेशमी चादर खींचकर सामने कर लेते हो ।

मन वैसे ही अपने हरेपन से हलकान रह जाता है, जिसमें उजला-मैला सब जल्दी उतर जाता है ।

कितनी रातें, कितनी दोपहरें आती हैं और उदास चली जातीं हैं कि तुम उन पलों में नहीं आए ।
वे सारे पल मुझसे उलाहने देते हैं
मैं इल्ज़ाम तुम्हारी मसरूफ़ियत पर डाल देती हूँ,
वे खिलखिला पड़ती हैं मुझपर ।

उनकी हंसी नीरफूल तुम्हारी हंसी जैसी है
तुम्हारी हंसी जैसे आल्हारि उम्र की गदबद हंसी

तुम यूँ ही जहाँ हो, वहीं से अपनी चिरपरिचित हंसी भेजते रहना मुझे
नहीं तो, सब ग़लीज़ लगने लगेगा
तुम्हारा साथ, मेरा प्रेम, और वो रात का उजाला सब ।




शब्दार्थ :
गोदामिल — थोड़ा - थोड़ा मीठा । मीठा का अंश बेहद कम, जैसे अधपके फलों का मीठापन ।