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उठ जाग रै मुसाफिर किस नींद सो रह्या है / हरियाणवी

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उठ जाग रै मुसाफिर किस नींद सो रह्या है
जीवण अमूल पिआरे क्यूं बखत खो रह्या है
रहणा न इत बणैगा दुनिया सरा सी फानी
इस मैं फंस्या तैं पियारे क्यूं मस्त हो रह्या है
उठ जाग रे मुसाफिर
भाई पिता अर पुत्तर होगा न कोई साथी
क्यूं मोह का बोझा नाहक मैं ढो रह्या है
उठ जाग रे मुसाफिर
ले ले धरम का तीसा मत भूल रे दीवाने
नैकी की खेती कर ले क्यूं बखत खो रह्या है
उठ जाग रे मुसाफिर
किसती अमूल पा कै हिम्मत तै पार कर लै
इस जल असार जग मैं तैं क्यूं डबो रह्या है
उठ जाग रे मुसाफिर