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उनकी खुशी में जान दूँ, मेरी ख़ुशी-खुशी नहीं / सीमाब अकबराबादी

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उनकी ख़ुशी में जान दूँ, मेरी ख़ुशी-ख़ुशी नहीं।
जैसे वही तो हैं ख़ुदा, मैं कोई चीज़ ही नहीं॥

उनकी पस्न्द है नियाज़, तर्के-नियाज़ क्या करूँ?
कोशिशे-बन्दगी में हूँ, आदते-बन्दगी नहीं॥