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उनींदी में कविता / अरुणाभ सौरभ

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आधी रात
रेलगाड़ी की आवाज़ में
तीन-दिन
तीन-रात
कसक सन्नाटा और
अधनींदी को दबाकर
सीने के किसी कोने में
सपनों को चस्पा-चस्पा
रेज़ा-रेज़ा वक़्त के साथ
पहर बीतने का इंतज़ार
अधजगी रात में
उनींदी डूबी आँखें
थकान को भूलकर
कविता पैदा करती है.