भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

उपले / सुरेश सेन नि‍शांत

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

फटती हुई पौ में
पाथती हुई उपले
वह औरत

पाथती हुई
अपने सुख और दुख
गर्मी और सर्दी से
भीगे हुए जुझारू दिन

उपलों पे भरी हुई हैं
पीड़ा भरी हथेलियाँ
हाथ की रेखाएँ ।