भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

उमस है, प्यास है, गहरी घुटन है / श्याम कश्यप बेचैन

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

उमस है प्यास है गहरी घुटन है
शहर है या कोई सँकरा सहन है

बिजूखे की तरह जो दिख रहा है
किसी मग़रूर का शायद जे़हन है

जे़हन पे हम बहुत इतरा रहे थे
चलो अच्छा हुआ वह भी रेहन है

नीयत सबकी डुला देती है काफ़िर
हवा उसकी गली की बदचलन है

वो मेरी रूह तो शायद नहीं है
ये देखो लाश किसकी बेकफ़न है

सिखा चालाकियाँ, इसको ना छीनो
मेरा सब कुछ मेरा दीवानापन है

मुझे बाहर ही बाहर ढूँढता है
मेरा एहसास कस्तूरी हिरन है