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उम्मीदें कुछ खास / शशि पुरवार

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नये वर्ष से है, हम सबको
उम्मीदें कुछ खास।

आँगन के बूढ़े बरगद की
झुकी हुई डाली
मौसम घर का बदल गया, फिर
विवश हुआ माली
ठिठुर रहे है सर्द हवा में
नम हुये अहसास।

दरक गये दरवाजे घर के
आंधी थी आयी
तिनका तिनका उजड़ गया फिर
बेसुध है माई
जतन कर रही बूढी साँसे
आए कोई पास।

चूँ चूँ करती नन्हीं चिड़िया
समझ नहीं पाये
दुनियाँ उसकी बदल गयी है
कौन उसे बताये
ऊँची ऊँची अटारियों पे
सूनेपन का वास।

नए वर्ष का देवन
पंछी गाते गीत
बागों की कलियाँ भी झूमे
भ्रमर का संगीत
नयी ताजगी, नयी उमंगें
मन में है उल्लास।

नये वर्ष से है हम सबको
उम्मीदें कुछ खास।