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उम्मीद एक बाकी / पृथ्वी: एक प्रेम-कविता / वीरेंद्र गोयल

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मैं प्यार करता हूँ
डरता हूँ
दर्द से
आहें भरता हूँ
फिर भी
मैं प्यार करता हूँ
क्या स्वाभाविक ही
या कोई कमी है
जिसे पूरा करना है
क्या कोई अधूरा पात्र है
जिसे भरना है
शायद अधूरी इच्छाएँ
अधूरी प्यास
अधूरी आस
उम्मीदद एक बाकी है
चाहे निचोड़ता हूँ
इंतजार के लंबे क्षण
खिसकता है फिर भी समय
कण-कण
चमकता मेरे हृदय में
तारों-सा टिमटिमाता।