भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

उलझाव का मज़ा भी तेरी बात ही में था / अज़ीज़ क़ैसी

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

उलझाव का मज़ा भी तेरी बात ही में था ।
तेरा जवाब तेरे सवालात ही में था ।

साया किसी यक़ीं का भी जिस पर न पड़ सका,
वो घर भी शहर-ए-दिल के मुज़ाफ़ात (पास में) ही में था ।

इलज़ाम क्या है ये भी न जाना तमाम उम्र,
मुल्ज़िम तमाम उम्र हवालात ही में था ।

अब तो फ़क़त बदन की मुरव्वत है दरमियाँ,
था रब्त (रिश्ता) जान-ओ-दिल का तो शुरूआत ही में था ।

मुझ को तो क़त्ल करके मनाता रहा है जश्न,
वो ज़िलिहाज़ (आदरणीय) शख़्स मेरी ज़ात ही में था ।