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उसे तो हादिसा कहिए अगर नहीं आता / धीरेन्द्र सिंह काफ़िर

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उसे तो हादिसा कहिए अगर नहीं आता
जो शख़्स ख़्वाब में भी आँख भर नहीं आता

तुम एक साथ न सारे ही रास्ते रख दो
हमारे पैरों में इतना सफ़र नहीं आता

सो मेरे दिल को बियाबाँ भी लोग कहते हैं
ये वो जगह है कि कोई जिधर नहीं आता

सियाह रात की ऊँगली पकड़ के चलते हुए
कोई भी चाँद कहीं भी नज़र नहीं आता

तेरा नसीब अगर मुझको रोक ले वर्ना
मैं वक़्त जैसा हूँ जो लौटकर नहीं आता

मिज़ाज- ए- दुनिया से दरअस्ल मैं न था वाक़िफ़
ज़रा भी होती भनक तो इधर नहीं आता