भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

एक अण्डा / दिविक रमेश

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

मेज़ पर अण्डे हैं पाँच और

हम चार हैं


अगर आ जाए कोई अच्छा-सा मेहमान

तो उसे भी

एक अण्डा ज़रूर खिलाएंगे।


पर आते कहाँ हैं शिल्पी के पापा

हम ही जाते हैं उनके यहाँ।


कुछ लोगों के घर

हम ही जाते रहते हैं अक्सर।


क्या कोई नहीं देखेगा कभी

कभी-कभार ही सही

हमारा भी नाश्ता

लगता है मेज़ पर


हम भी खाते हैं

नाश्ते में अण्डा


मेहमान के आने पर

हम भी

छुपा नहीं लेते

खाने की थालियाँ


आज अगर आ जाएँ

शिल्पी के पापा

तो हम भी खिलाएंगे उन्हें

नाश्ते में अण्डा।