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एक आदर्श व्यक्तित्व / शिव कुमार झा 'टिल्लू'

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जब जब झाँकू अन्तः करण में
पुलकित होता अविरल गात
सहस्त्र जनो के तुम प्रतिपालक
हिय में बसते जैसे तात
समभाव दृष्टि से सबको देखा
सम्बल संजीव हो या उत्तम द्वारपाल
सुबह सबेरे सब की सुनते
प्रदीप परशुराम संग गोपाल
अमर दिवाकर मात्र दिवसपति
षष्टयाम् कर्मशील मेरे दिनेश
अल्पविरामी गांधी जैसे
कर्म अर्पण शाश्वत सन्देश
उच्च विचार आचरण सादा
मर्यादा के तनय प्रवीण
क्षण शीतल क्षण तप्त रेत सा
दीर्घकाल ना कांति मलीन
भौतिकता का विकल संत्रास नहीं
अंतर -बाहर एक समान
क्षण में हुए निलय पुनि वापस
अन्यत्र गए सहकर्मी महान
फीकी चाय झंटू के चूल्हे की
या हो आनंद का मशाला डोसा
चाकर- सहकर्मी के संग चखते
सुकू -लखन का लाल समोसा
शब्द विनम्र व्यवहार मित्रवत
नहीं माप सकता मैं लेखा
दीन सहचर को भी संग बिठाते
अहंकार का लेश ना रेखा
चले गए जो गुणधर्मी सहकर्मी
उनके ईमान को खूब संजोया
शिव प्रसाद के तात को लबलब
अर्थघट से सिनेह भिंगोया
चिरकालिक हो आपकी अर्चिस
काया स्वस्थ रहे प्रियवर
हो विष्णुप्रिया की निधि से संचित
भार्या संतति पूर्ण प्रखर