भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

एक कुंज / बाबू महेश नारायण

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

एक कुंज,
बहुत गुंज,
पेड़ों से घिरा था
झरने के बग़ल में
बिजली की चमक भी न पहुँचती थी वहाँ तक
ऐसा वह घिरा था
जस दीप हो जल में
पानी की टपक राह भला पावे कहाँ तक।