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एक छद्म बुद्धिजीवी का गीत / महेश आलोक

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हम उतना समझते हैं जितना
समझना जरुरी है

हमें उतना पता है जितना समझदार होने
के लिये काफी है। विरोधी को कितनी समझ से
परास्त करना है इसकी कला
हमें पता है। हमें पता है मुँह की खाने पर
झेंप मिटाने की कला

हमें मालूम है कि हमें सब कुछ मालूम है
हम समझते हैं कि हम सब कुछ समझते हैं
हमें पता है कि हमें सब कुछ पता है

और मैं अन्तिम बार कहता हूँ
कि हमें सब मालूम है और हम
सब समझते हैं