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एक तरफ़ा लडाई / रश्मि रेखा

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पता नहीं कैसे आ गई एकाएक यह नौबत
बेवक्त आसार हो गए बारिश के
आसमान में बिजली की तरह चमकने लगीं बातें
चाबुक की मार से पड़ने लगे इनके निशान
सचमुच कितने असरदार होते हैं
बातों में छिपे सनसनीखेज मायने
जिनका इल्जाम भी नहीं लगाया जा सकता
पर जिनके वजन ढ़ोने में होती रही ज़ख्मी
कुछ कर गुजरने की जुटाई गई ताक़त

तमाम चीज़ों को परे धकेलता
सब कुछ पहले सा बनाए रखने की ख्वाहिश में
लगातार रफूगरी में जुटा रहा मन
इस पूरी एकतरफा लड़ाई के मोर्चे पर

कितने दुखों से भरा है यह जानना
कि आदमी की सही पहचान तब होती है
जब वह गुस्से में हो
तभी जानी जा सकती है अपनी औकात भी

एक अजीब सी हवा चल रही है इर्द-गिर्द
समय की दुख रही है नस
तमाम हलचलों को मिल गई है फुर्सत
बस जाग रही है नींद अपनी आँखें खोले
टपक रहे है कतरों में बातों के मतलब
ऐसे में कितना बेहिसाब बोलती है ख़ामोशी
जिसमे खामोश होते जाते है सारे जज्वात

आसान नहीं है कर पाना इजहार इस कैफ़ियत का