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एक नन्हा-सा सुख हो दुखों के लिए / विनोद तिवारी

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एक नन्हा-सा सुख हो दुखों के लिए
ख़ुशियाँ बन जाएँ हम आँसुओं के लिए

सिर्फ़ अपने लिए ही जीए क्या जीए
जी सकें तो जीएँ दूसरों के लिए

चन्द काँटे भी मंज़ूर करने पड़ें
तो करें फूल की ख़ुश्बुओं के लिए

काश कोई सही नेक रस्ता मिले
लोग चलते रहें रास्तों के लिए

इसने दुत्कार दी उसने फटकार दी
आसरा हम बनें बेबसों के लिए