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एक पल में दम-ए-ग़ुफ़्तार से लब तर हो जाए / 'महताब' हैदर नक़वी

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एक पल में दम-ए-ग़ुफ़्तार से लब तर हो जाए
तुझसे जो बात भी कर ले वो सुख़नवर हो जाए

अब यहाँ सिर्फ़ परी चेहरा रहेंगे आकर
और कोई इनके अलावा है तो बाहर हो जाए

हो गया रिश्ता-ए-जाँजा फिर दिल-ए-नादान के साथ
इस सिपाही की तमन्ना है कि लश्कर हो जाये

अब के ठहराई है हमने भी यही शर्त-ए-वफ़ा
जो भी इस शहर में आये वो सितमगर हो जाए

यानि ऐ दीदा-ए-तर! तेरी इनायत है कि बस
वरना मैदान-ए- सुख़न आज भी बंजर हो जाए

हमने आशोब के आलम में कही है यह ग़ज़ल
सो ये ख़्वाहिश है कि हर शेर गुल-ए-तर हो जाए