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एक मोअ'म्मा है समझने का / फ़ानी बदायूनी

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एक मोअ'म्मा<ref>पहेली</ref> है समझने का ना समझाने का
ज़िन्दगी काहे को है ख़्वाब है दीवाने का

ख़ल्क़ कहती है जिसे दिल तेरे दीवाने का
एक गोशा<ref>कोना</ref> है यह दुनिया इसी वीराने का

मुख़्तसर<ref>संक्षेप में</ref> क़िस्सा-ए-ग़म यह है कि दिल रखता हूँ
राज़-ए-कौनैन ख़ुलासा है इस अफ़साने का

तुमने देखा है कभी घर को बदलते हुए रंग
आओ देखो ना तमाशा मेरे ग़मख़ाने का

दिल से पोंछीं तो हैं आँखों में लहू की बूंदें
सिलसिला शीशे से मिलता तो है पैमाने का

हमने छानी हैं बहुत दैर-ओ-हरम<ref>मंदिर और मस्जिद</ref> की गलियाँ
कहीं पाया न ठिकाना तेरे दीवाने का

हर नफ़स<ref>सांस</ref> उमरे-गुज़िश्ता<ref>बीत चुका समय</ref> की है मय्यत<ref>मौत का मातम</ref> फ़ानी
ज़िन्दगी नाम है मर मर के जिये जाने का

शब्दार्थ
<references/>