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एक रात सपने में / श्रवण कुमार सेठ

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एक रात सपने में मेरे
एक सितारा आया,
सिरहाने वो बैठा मेरे
चुपके से जगाया

बोला उसने चलो तुम्हे
तारों की सैर करा दूं
मैने कहा नहीं माँ को ये
पहले बात बता दूँ

माँ ने बोला जाओ बेटा
पर जल्दी आ जाना
कल हिंदी का इम्तिहान है
जल्दी स्कूल है जाना

उस तारे ने मुझे पीठ पर
अपने तुरन्त बिठाया
पलक झपकते मुझको पल में
चांद पे ले के आया

वहां चांद पर तारों के
लगे हुए थे मेले
परियों के संग झूल रहे थे
वहाँ सितारे झूले

नन्हे-नन्हे इन तारों से भर दो
मेरा झोला
मैंने परियों की रानी के
कान में ऐसा बोला

उड़न खटोले में रानी के
जैसी मेरी हुई बिदाई
और हजारों तारों के संग मैं
घर वापस आई।

वापस आते राह में जिसके
घर था नहीं उजाला
एक एक तारे सजा के घर में
मैने किया उजाला।

घर पहुंची जो सभी दोस्तों
में तारों को बांटा
गुस्से में थी मईया मेरी
उसने मुझको डांटा

इतने में सपनों की चमचम
गाड़ी छूट गयी
सूरज चाचू सिरहाने थे
निन्दिया मेरी टूट गयी।