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ऐसे बने रघुनाथ कहै हरि काम कला छबि के निधि गारे / रघुनाथ

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ऐसे बने रघुनाथ कहै हरि काम कला छबि के निधि गारे ।
झाँकि झरोखे सो आवत देखि खड़ी भई आनि कै आपने द्वारे ।
रीझी सरूप सौँ भीजी सनेह योँ बोली हरे रस जाखर भारे ।
ठाढ़ हो तोँसो कहौँगी कछू अरे ग्वाल बड़ी बड़ी आँखिन वारे ।

 

रघुनाथ का यह दुर्लभ छन्द श्री राजुल मेहरोत्रा के संग्रह से उपलब्ध हुआ है।