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कँटक ते अटकि अटकि सब आपुहीँ ते / शिव

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कँटक ते अटकि अटकि सब आपुहीँ ते ,
फटिगे बसन तिन्हैँ नीके कै बनाय ले ।
बेनी के बिचित्र बार हारन मे आय आय ,
अरुझे अनोखे ते तौ बैठि सुरझाय ले ।
कहै शिव कबि दबि काहे रही है बाम !
घाम ते पसीना भयो ताको सियराय ले ।
बात कहिबे मे नन्दलाल की उताल कहा ?
हाल तो हरिन नैनी हफनि मिटाय ले ।


शिव का यह दुर्लभ छन्द श्री राजुल मेहरोत्रा के संग्रह से उपलब्ध हुआ है।