भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

कघौं सेस देस तें निकसि पुहुमि पाई आय / रघुनाथ

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

कधौं सेस देस तें निकसि पुहुमि पै आय,
          बदन ऊचाय बानी जस असपन्द की.
कैधौं छिति चँवरी उसीर की दिखावतिहै,
          ऐसी सोहे उज्ज्वल किरन जैसे चन्द की.
जानि दिनपाल रघुनाथ नंदलाल जू को,
          कहैं रघुनाथ पाय सुघरी अनन्द की.
छूटत फुहारे कैधौं फूल्यो है कमल तासो,
          अमल अमंद मढ़े धार मकरन्द की.