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कथि करा घैलिया, कथि के गेडुलिया, कथि के कलसवा डोरी हे / अंगिका लोकगीत

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   ♦   रचनाकार: अज्ञात

प्रस्तुत गीत में कृष्ण-जन्म के संबंध में देवकी और यशोदा के मिलन को लोकमानस ने अपने ढंग से सोचा है। यहाँ देवकी कंस द्वारा अपनी सात संतानों के वध के शोक से कातर होकर अपनी आठवीं गर्भस्थ संतान के लिए यमुना के किनारे रुदन कर रही है। यशोदा उसके रुदन को नदी के उस पार से सुनकर, रुदन का कारण जानने के लिए विह्वल हो उठती है। नदी पार करने का कोई साधन न देखकर वह अपनी साड़ी सिर से बाँध लेती है और घड़े को उलटकर उसके सहारे वह नदी पार कर जाती है। देवकी के दुःख का कारण जानकर वह संवेदनाग्रस्त होकर, उसके दुःख को बाँटने के लिए प्रस्तुत हो जाती है। यशोदा कहती है-‘बहन, तुम्हें तो पुत्र ही होता है, लेकिन मेरा एक भी पुत्र बचता नहीं। तुम मुझे अपना पुत्र देकर मेरी पुत्री ले जाना। मैं इस पैंचे के पुत्र से ही अपने हृदय को शांत करूँगी।’ देवकी को विश्वास नहीं होता कि पुत्र का भी पैंचा संभव है। किंतु, यमुना के किनारे दोनों सूर्य, चंद्र, गंगा और यमुना को साक्षी रखकर पुत्र-पुत्री क परस्पर आदान-प्रदान की प्रतिज्ञा करती हैं।
यह गीत बहुत ही कारुणिक है तथा स्त्री के कोमल हृदय और उसकी पर दुःख कातरता का सुंदर उदाहरण है।

कथि करा धैलिया<ref>घड़ा</ref>, कथि के गेडुलिया, कथि के कलसबा डोरी हे।
ललना रे, कौन बहिनी पनिया के जाय, नदी रे जमुना के जल भरे हे॥1॥
सोना केरा धैलिया, रूपा के गेडु़लिया भल हे, अब रे रेसम के कलसबा डोरी हे।
ललना रे, जसोमंती<ref>यशोमती; यशोदा</ref> पनिया लय जाय, नदी रे जमुनमा के जल भरे हे॥2॥
आहे धैलिया जे भरि अररा<ref>किनारा</ref> लगाबै, चरन पखारै नय हे।
ललना रे, चारो भर<ref>चारो तरफ</ref> नजर खिड़ाबै<ref>नजर दौड़ाना</ref> कौने बहिनी रोबै छै हे॥3॥
नहीं देखौं लाहिया<ref>नाव</ref> आरो<ref>और</ref> चहेरिया<ref>लग्गी खेनेवाला, नाविक</ref> भैया, आरो केवटबा भैया हे।
ललना रे, कौने बिधि उतरब पार, कमरबा मोरा भींजत हे॥4॥
खोलब में डाँरो से सड़िया, बान्हब हम पगड़िया भल हे।
ललना रे, धैलिया उठाय होयबै पार, कमरबा मोरा नय भींजत हे॥5॥
किए तोरा सासु त रे ननदिया दुख, किए त नैहरबा दूर हे।
ललना रे, किए तोरा पियवा गेल परदेस, कौने दुख रोबै छऽ हे॥6॥
अरे नहीं मोरा सासु त ननदिया दुख, नहीं त नैहरबा दूर हे।
बहिनो हे, नहीं मोरा पियबा गेल परदेस, कोखिया बिहुन<ref>कोखहीन; निःसंतान</ref> हम रोबहुँ हे॥7॥
सातहिं पुतर दैब मोरा देलक, कंस पापी हरि लेलकै हे।
बहिनो हे, अठमा गरभ मोर तुलाएल<ref>पूरा होना; निकट आना</ref>, एकरो<ref>इसका भी</ref> नय भरोसा छीकै हे॥8॥
तोहरा के कोखि बहिनो गे पूत उपजौ, मोरा एको पूतो नहीं बचै हे।
बहिनो गे, अपनो पुतरबा दीहो पैंचा, कि जियरा बुझायब हे॥9॥
नून तेल पैंचा पालट, सेनुरो नहिं पैंचा होय छै हे।
बहिनो गे, कोखिया के जनमल अब पुतर, सेही गे कइसे पैंचा होयतै गे॥10॥
सत देहो<ref>सत देहो, सत्व दो, साक्षी देकर प्रतिज्ञा करो</ref> सत देहो चान सुरुजबा भल, गंगा हे जमुनमा भल हे।
ललना रे, देबकी जसोदा सतबनमा<ref>प्रतिज्ञा</ref> करै, नदियो जमुनमा धार बीच हे॥11॥

शब्दार्थ
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