भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

कन्फैशन / माया मृग

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज


हम दोनों को विरासत में मिली,
एक सी ईमानदारियां,
एक सी चालाकियां।
बरसों ढोते रहे हम,
अपने-अपने हिस्से की,
ईमानदारियां-चालाकियां।

आज हम दो नेक बन्दे,
एक वसीयत के दो उत्तराधिकारी
आमने-सामने बैठे,
हकीकतों को खोलने।

तुमने ईमानदारी से स्वीकार की
अपनी चालाकियां,
और मैंने बड़ी चालाकी से
स्वीकार की अपनी ईमानदारियां !