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कला के अधिनायक : हुसैन / उत्तिमा केशरी

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हे !
हर दिल अजीज हुसैन
हम ऋणी हैं, तुम्हारी कला-साधना के।

पीड़ा में भी आनन्द उठाने का
हौसला,
तुम्हारा उत्स था।
तुम साधते रहे, अपनी कूची को
अर्जुन की तरह,
लड़ते रहे — बिलकुल अकेले,
अभिमन्यु की तरह

और
कर्ण की तरह तन्हा रहना
कभी साला नहीं तुम्हें।

भीष्म पितामह की तरह
ज़ख़्मी होकर, पी गए
दर्द के हलाहल को
शिव की तरह।

नुक्कड़ की चाय की चुस्की का आस्वाद,
भला तुम्हें छोड़, कौन ले सकता है !
समय की धारा को,
तुमने ही दी एक नई दृष्टि।

सचमुच,
तुम कला के
अधिनायक हो !

विराट के, इस महाअस्तित्व में
तुमने जिस्म छोड़ा है

पर
रूह तो तुम्हारी
हर कलाकार प्रेमी के पास
आज भी
प्रेरणास्रोत बन
एक विलक्षण धरोहर के रूप में सुरक्षित है।