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कविक कामना / शिव कुमार झा 'टिल्लू'

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पूत बढ़बैछ वंशक मान!
मुदा माँ आर्याक भक्त
आशु काव्यक एकटा नायक
मंगलनि पोतीक रूप मे सुकन्या?
अर्चना, अपर्णा वा भव्या
कवि बनि गेलाह पितामह
सफल भेलनि कबुला पाती
माँ जगत्धात्री आ
पिपरौलिया बाबा दुनू प्रसन्न!!
भगवत कृपा देखि-
खुशी सँ फुललनि जीर्ण छाती
जेठकाक जीवन झखरैत पाषाण
विवाहक भेलनि सोलहम बरख
एखन धरि निःसंतान
दोसर बुड़िबक निष्कपट
परंच पितृसेवक अविराम
करची सन लकलक काया
रंग घन- इव-श्याम
घनश्यामक कनियाँक कोर मे
सद्यः वैदेही अएली बनि कन्या
कविक उपवन भेल धन्या
मुदा!साक्षीक पिताक स्थान
जेठके कें भेंटतनि
श्याम के छन्हि जौं बाप कहयबाक
स'ख आश वा दीर्घ पिआस
त' दोसर बेटीक लेल
राखथु एकादशी उपवास
येअह भेल
कवि गेला स्वर्ग
भेंटलनि मुक्ति भेलनि अपवर्ग
साक्षीक माताक कोर मे
फेर बेटी बनि अएली भारती
विचित्र अन्हेर
प्रकृतिक फेर
अंगने-आँगन उड़य लागल
गप्पक हरबिडरो
बरसय लागल
कनफुसकीक झांट
अपने हाथ सँ कविजी
रोपलनि बबूरक काँट
बड़की काकीक कटाह तान
नहि हुनका संसारक ज्ञान
सभ बेचि बीकिनि क' खा गेलथि
ताहि पर सँ केहेन कामना
कबूला मे जोड़ा बेटी
हम रहितहुँ त' दाबितहुँ घेंटी
आश्चर्य केहन कविक कामना
बेटीक लेल प्रार्थना
के बूझत?
तनया सिनेह
मायक गेह
जाहि कोखि सँ जनमल
तकरे अपमान करैछ लोक
बहुत रास अहंकारी
एक बेर आर अन्हेर
कविक दृष्टि मे नहि
बड़की काकी सन
सिनेह-शत्रुक दृष्टि मे
बिनु बजौने फेर अन्हेर
भादवक अन्हरियाक फेर
स्तब्ध छथि सभ किओ
सभ किओ मने लोक चेतन-सून
जकर गणना भेल बरखा बून
बेसी लोक काकिये सन
औना रहल छथि समाज मे
नारी भ' क' नारीक विरोध
तें फेर भदबा सभ मूक भ' गेली!
देखि कवि कुलक दशा
आँगनक बहुआसिन सभ
टोलक किछु अनन्या
सिनेह सँ कपार पीटल
कविक व्यवहार सँ
उपजल सिनेह सँ
छोटकियो पुतोहुक कोर मे बेटी
“एकटा बेटा होइतनि
हां भगवान महात्माक इएह मान
मंगलनि एक आ देलियनि तीन
दरिद्र कविक जाहि डीह केँ
कीनि काकी कविक श्राद्ध
करबाक धयने छलीह आश-
ओ मिझा देलखिन
साक्षात भवानी डीहक ओगरबाह
बनि तेसर खेप आबि गेली
साक्षी-मीनाक्षी-आद्या
सोझाँ आबथु पूतना
आब कृष्ण नहि
राधा, रुक्मिणी आ सीता
रणक्षेत्र मे तैयार
पुष्पमाल लागल फोटो मे
कवि छथि मुग्ध आ तल्लीन
जेना कहि रहल होथि
के रखलक जहानक मान?
के बढ़ेलक कुलक सम्मान
के बचलैक वंश
सीता-सावित्री-अहिल्या
वा रावण- कौरव-कंस