भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

कविताएँ / मनीष मिश्र

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

सफेद फूलों या नीली रातों से
नहीं जन्मती कविताएँ।
वे घबराया हुआ मौन है
अभिशप्त प्रेत कथाओं का।
उखड़ी हुयी साँसें, सतायी हुयी उम्रों की
चिंदी-चिंदी आक्रोश, थके हुये लोगों का।
कब्रों में पड़ी तारीख या
पन्नों में मृत इतिहास नहीं है कविताएँ-
वे आँखें हैं जिदंगी को ताकती हुयी
वे सपने हैं काली निराश आँखों के
वे यादें हैं एक निराश प्रेमी की।
नफरत का कुल्ला करती औरतें हैं वे
सहवास के अन्तिम क्षणों का निर्दोष चेहरा
मृत्यु के पूर्व का गहन मौन
विदा के पूर्व उठने वाले हाथ
आँखों के कोरों पर जमी नमीं हैं वे।
सफेद फूलों या नीली रातों में
नहीं जन्मती कविताएँ
वे पनपती हैं दु:ख और पसीने के लथपथ विन्यास में।