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कविता के प्रति हमारी अनुदारता / अरविन्द श्रीवास्तव

Kavita Kosh से
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हमारी सारी थकान
हमारी कविताओं में दिखती है

अवसाद भाव और सम्मोहित करते शब्द
कविताओं में ढल कर
समग्रता प्राप्त करते हैं
 
हमारी थकान में रहती है दिन भर
धूर्त्त लोगों की संगति सहित
मृतप्राय वस्तुओं में पुनर्जन्म की उम्मीद
बगदाद का संग्रहालय और बामियान के बुद्ध
मौसम में आए अचानक परिवर्तन पर नुक्ताचीनी
अभिवादन के लिए उठे हाथ की अनदेखी
स्कूल से बच्चों की सकुशल वापसी की चिंता
असहिष्णुता का कुख्यात वक़्त

हमारी सारी थकान कविता बन निखरती है
और अक्सर हम
कविताएँ लिख
भेज देते हैं
राजधानी की मंडियों में !