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कविता दिवस / चंदन द्विवेदी

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उसपर एक कविता लिखने का शौक हुआ
थोड़ी अल्हड़ शोख और
उसके जैसी गुस्सैल-सी कविता
उसके बालों-सी थोड़ी रूखी लेकिन घनी

उसके समर्पण का सच लिये मात्राएँ हो जिसकी
उसके बाहु वलय-सा अनन्त घुमाव हो जिसमें
ताकि जहाँ से पढूं फिर वही लौट आऊँ मैं
तीन घंटे बीते
तीन बार उससे मिला
थोड़ी हंसी चुराई
थोड़ा नखरा मिलाया
थोड़ी बासी और ताजी
अर्धविराम वाली मुस्कान डाली

फिर शुरू किया भावों का महायज्ञ
लो, शब्द ही लरजने लगे
कविता अधूरी ही रही शायद
एक ख़ास वजह थी और वह बस तुम जानते हो
भावनाओं का कभी पूर्णविराम नहीं होता।

तुम कविता-सी मुश्किल हो
जिसे मैं लिख नहीं पाता
बस पढ़ता हूँ, अर्धविराम के साथ
क्योंकि तुम खुद एक कविता हो
हाँ तुम मेरी कविता हो