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कविता – 1 / योगेश शर्मा

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जिन घरों की दीवारों पर रंग नही होते
वहाँ दो चार मुरझाए हुए से
फूलों में कैद रंग
हर नए दिन इत्मीनान की एक पुरानी परिभाषा की,
आत्मीयता से रक्षा करते हैं।
जिन घरों में हकीकत बहुत कड़वी होती है
वहीं विकसित होती है कल्पनाएं
अधिक।
उन घरों के आंगनों में,
पनपकर सूख जाते हैं भाषाओं के सब सिद्धान्त।

उन घरों की खूँटियों पर टँगा मिलेगा
 पुराने लिफाफे, खेत का सामान, आदि आदि...
लेकिन नही मिलेगी ऐसी खूँटी कोई
जिस पर टँग सकें गहरे सन्ताप, फैली पीड़ाएँ
और अहरह के दुख।

एक दिशा है जिसमें एक अमीर तारा
कभी नही डूबता,
उस दिशा में कभी नही जाता सूरज
उस दिशा में कभी गरीबी अस्त नही होती,
दुनिया में जितने बेरंग घर हैं
सब उसी दिशा में हैं।

मैं जिंदगी में जितने इंद्रधनुष देखूँगा,
अपनी कविताओं के बदले
सबसे रंग माँगूँगा,
उन घरों के लिए....
जिनकी दीवारें बेरंग होती हैं।