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कवियों में एक नाम / सुनीता जैन

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कवियों में एक नाम
बहुत सुना था-
शमशेर,
पढ़ा नहीं था,
अब यह न पूछो, क्यों?
कारण कुछ भी हो सकते हैं
उससे क्या
पढ़ा नहीं, यह तो फिर भी
सच है?

आज एक बंद हो रही
लायब्रेरी के फर्श पर
मिल गये पड़े-शमशेर,
वह ही क्यों
पंत जी भी लोटे थे वहीं पास में
और दीप-शिखा में उजली, लिपटी
महादेवी थीं,
इधर-उधर खोजा शायद
मिल जाएँ सर्वेवर भी
उनको भी पढ़ने की
जाने कब से इच्छा थी

और यह भी अच्छा था
कि वे सब
एक-दूसरे का हाथ गहे थे
पकड़ हाथ में सबको
अपने कमरे में लायी
पोंछ-पांछ कर पढ़ा इन्हें,
और कभी उन्हें
कैसा अद्भुत ध्वनि का संगम, और
बिम्बों का मेला था!

पंत जी धरती का
करतल पकड़े-
‘मैं तुम पर हूँ मोहित’
कहते बैठे थे,
महादेवी मेघ-सी फिर
झर चली थीं

और शमशेर?
वे गिन्सबर्ग को
गिनवा रहे थे कि
कवि और कवि में
कितनी कम
सीमा-रेखा होती है।