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कहबऽ तू जवने कुछ तोहके चढ़ाइबि / रामेश्वर प्रसाद सिन्हा 'पीयूष'

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कहबऽ तू जवने कुछ तोहके चढ़ाइबि,
बाकिर नयनावाँ के लोर जनि माँग।
जब-जब तू चहल खुसी देइ दिहलीं
अपना हिया के हँसी देइ दिहलीं।

कहबऽ त खुसिअन के ढेरी लगाइबि,
बाकिर सवनवा सजोर जनि माँग।
जबे-जबे अइल तू मनवाँ का खोरी
भरि-भरि दिहलीं तरइअन से झोरी

कहबऽ त ढेर पुरनवाँवी चढ़ाइबि
बाकिर अमवसा के कोर जनि माँग।
जब-जब फागुन जिनिगिया में आइल
हियरा में अजगुत अनेसा समाइल

भर हीक फगुनहटा तोहके पिआइबि,
बकिर चइत के झकोर जनि माँग।
जिनिगी के बाजी पर सब कुछ गँववलीं
केहू से कुछऊ कबहूँओं ना पवलीं

कहबऽ त सपनो के थाती लुटाइबि,
बाकिर हिया के मरोर जनि माँग।