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क़ायनात बेहाल / कृष्णा वर्मा

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19
प्रत्येक भीड़
कुम्भ का मेला नहीं
भीड़ भेड़ क्या फ़र्क
देख कूदना
कौन जाने किधर
हाँक दे गडरिया।
20
दृढ़ संकल्प
जाग्रत मनोवांछा
तभी लक्ष्य हो प्राप्त
खड़े पानी में
कश्तियाँ तैराने से
मिले कब किनारे।
21
नई उम्रों की
देख ख़ुदमुख्तारी
रुष्ट हो गए राम
कतरे पर,
ताले उड़ान पर
लो भुगतो अंजाम।
22
कोरोना काल
निगलता बंदों को
क़ायनात बेहाल
मन हैरान
आलमी अज़ाब का
कैसे होगा निदान!
23
टोह न चाप
भोंका कोरोना का
खंज़र चुपचाप
मिले सबक़
मूरख बंदे तुझे
चली वक़्त ने चाल।
24
बाँधा स्त्री को
सीमित कीं सीमाएँ
तुम कैसे अंजान
परिधि-घिरी
अविरल विशाल
छोड़ो बुनना जाल।
25
सब्ज़ पत्तों पे
मौसम का क़हर
ज़र्द दोपहरियाँ
तपे पहर
पी रहीं उदासियाँ
जुदाई का ज़हर।
26
अंजाम नहीं
होता बेक़रारी का
फिर भी बेक़रार
इंसाँ बहता
अपनी रवानी में
दरिया रवानी-सा।