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काँटे भी हैं वहीं, वहीं खिलता गुलाब है / डी. एम. मिश्र

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काँटे भी हैं वहीं, वहीं खिलता गुलाब है
क्या उसकी रहमतों का भी कोई हिसाब है

ग़म भी वही देता है तो खुशियाँ भी दे वही
क्या उसकी अज़मतों का भी कोई जवाब है

गीता, कुरान, बाईबिल है नाम बस अलग
पढ़ता हूँ तो लगता है एक ही क़िताब है

बहका नहीं हूँ पी के मैं आया हूँ होश में
महशर में उनके हाथ मिली जो शराब है

तेरे हज़ार नाम हैं, तेरे अनेक रूप
तेरे समान कौन है तू लाजवाब है

बेशक नहीं है याद हमें जो किया था कल
लेकिन खु़दा के पास तो पूरा हिसाब है