भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

काली लड़की / रश्मि रेखा

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

एक काली लड़की अक्सर सोचती है
अपनी कजरारी ऑखें
स्याह घने बाल
सुरमई आकाश
फिर
अपने जामुनी रंग के बारे में
क्या लड़की होने की पीड़ा कम थी
जो काले रंग का भी शाप मिला
इस रंग की दमक में क्या है
जिसकी रोशनाई में स्याह हो जाते है
बनते हुए वे ख़्वाब
जो घटकर मिलते है किसी लडकी को
इस दुनिया में

हमेशा की तरह लौट गए वे लोग
पसर गई उदासी
माँ के आख़िरी हिस्से तक
रह गई वह शिलालेख सी
अपने अनंत सपनों से दूर भागती

अवहेलना का संगीत सुनती
उपहास के कई दृश्यों में शामिल
कोकिल आत्मा अनुभव करती है
उसका तो कोइ समाज नहीं है
यहाँ कृष्ण को भी नहीं चाहिए
भावी संतति अपने जैसी
और प्रेम भी अर्पित है
श्वेत राधिका को ही
यहाँ नहीं है सम्भावना कभी जन्म लेने की
कोई किंग लूथर या नेल्सन मंडेला की

जीवन में अपने रंग भरने से निर्वासित
महज कालेपन की सजा काटती
उस लडकी की गहरी दुखती है आत्मा
कि रंग-भेद का विरोधी
अश्वेतों का अपना
उसका अपना देश भारत ही है
उसके लिए बीता हुआ दक्षिण अफ्रीका