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कितनी धरती, कितने ईश्वर / हरिवंश प्रभात

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कितनी धरती, कितने ईश्वर वह गहते हैं
औलादों की ख़ातिर माँ बाप क्या ना सहते हैं।

बेटे भले ही छोड़ आये उन्हें अनाथालय में,
कुछ औलाद हैं जो माँ बाप का साया गहते हैं।

मेरे जिगर के टुकड़े, ‘कैसे बतलाओ हालात हैं’?
दुःख में भी अल्फ़ाज़ जिगर में माता पिता ये कहते हैं।

बहुत नादानी करते हैं ऐसे कुछ नालायक से बेटे,
माता पिता की असली जगह दिखाते ही वे रहते हैं।

‘प्रभात’ मिलेगी उनको, उनकी दुआओं से मंज़िल,
वरना इनको दुःख देने से, सुख के किले भी ढहते हैं।