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किया है हवन तो हथेली जली है / सूर्यपाल सिंह

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किया है हवन तो हथेली जली है।
कहो किस तरह ज़िन्दगी यह पली है?

यहाँ देष दुनिया सभी दांव पर हैं,
न उत्कोच लेते उँगलियाँ जली हैं।

कली कंटकों की प्रकृति तो अलग है,
मगर कंटकों बीच पलती कली है।

यहाँ आग पानी व तिनका सभी हैं,
लगा आग फिर वे बुझाते गली हैं।

जलाओ बुझाओ बुझाकर जलाओ,
बची ज़िन्दगी की न कोई तली है।