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किशोरी / सत्यपाल सहगल

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वह अभी से हारी नज़र आती है। वह ज़मीन ही नहीं
थी जहाँ इस उम्र में फूल खिलते हैं। ओह! बीस बरस
बाद वह याद करेगी यह दिन। तब उस समय की उसकी
हार और कई गुणा बढ़ जायेगी।