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किससे छूटेगा कहाँ हाथ तुझे क्या मालूम / प्रेमरंजन अनिमेष

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किससे छूटेगा कहाँ हाथ तुझे क्या मालूम
कोई कब तक है तेरे साथ तुझे क्या मालूम

उससे भी अच्छी तरह मिल जो नहीं है अच्छा
उससे फिर होगी मुलाक़ात तुझे क्या मालूम

आ कि फूलों की तरह भीग लें इस शबनम में
अब कहाँ होगी ये बरसात तुझे क्या मालूम

कितना आसान है इलज़ाम किसी को देना
उसकी मजबूरी-ए-हालात तुझे क्या मालूम

जोड़ कर रख सको जितना रखो इन रिश्तों को
खोई कितनों से ये सौग़ात तुझे क्या मालूम

तू तो बस जाएगा वीरां कहीं हो जाएगा
दिल के भीतर का ये देहात तुझे क्या मालूम

नींद में देर तलक ख्‍़वाब धड़कते जागे
उसने दिल पर था रखा हाथ तुझे क्या मालूम

कैसे लग जातीं अभी दिल को ज़रा-सी बातें
कल रहेगी भी कोई बात तुझे क्या मालूम

तुम थे जब सोए हुए जागी लिए सुर्ख़ आँखें
भोर को बुनती हुई रात तुझे क्या मालूम

काम जिससे चले बस वो ही हुनर चलता है
दुनियादारी के तिलस्मात तुझे क्या मालूम

दोस्ती दुश्मनी कुछ भी तो यहाँ दिल से नहीं
काँच के सारे ख़यालात तुझे क्या मालूम

खिलता इक फूल हो या चलता कोई अफ़साना
किस जगह ख़त्म की शुरुआत तुझे क्या मालूम

चालें तो चलते बिसात अपनी मगर क्या 'अनिमेष`
कहाँ शह होगी कहाँ मात तुझे क्या मालूम