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किसी का न मैं कुछ बुरा चाहता हूँ / बाबा बैद्यनाथ झा

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किसी का न मैं कुछ बुरा चाहता हूँ
समूचे जगत का भला चाहता हूँ

भला सोचता हो बुरा सोचता हो
सभी की मगर मैं दुआ चाहता हूँ

मुसलमां रहे या रहे सिक्ख हिन्दू
सभी मिल रहें खुश, मज़ा चाहता हूँ

हमेशा बने जो मुहब्बत में रोड़े
उसी दोस्त से फासला चाहता हूँ

रव़फ़ीबो नहीं तुम मुझे रोज़ टोको
न शिकबे न तुमसे गिला चाहता हूँ

मिले थे जहाँ हम नदी के किनारे
मिलन का वही सिलसिला चाहता हूँ

मुहब्बत मिले गर मुझे भी खुदा की
सदा के लिए ही विदा चाहता हूँ

नहीं आज फ्बाबाय् करेगा शिकायत
अभी मंच से अलविदा चाहता हूँ