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किसी घर में,न माह-ओ-साल में, मौसम में रहते हैं / 'महताब' हैदर नक़वी

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किसी घर में,न माह-ओ-साल में, मौसम में रहते हैं
कि हम हिज्र-ओ-विसाल-ए-यार के आलम में रहते हैं

वही गुलगूँ क़बा-ए-यार है नज़्ज़ारा-ए-हैरत
उसी नामेहरबाँ के गेसु-ए-पुरख़म में रहते हैं

वही प्यासी ज़मीं है हल्क़ा-ए-ज़न्जीर की सूरत
वही एक आसमाँ जिसके तले शबनम में रहते हैं

हमें ये रंग-ओ-बू की बात अब अच्छी नहीं लगती
बुरा क्या है जो हम अपनी हि चश्में नम में रहते हैं

ग़ुज़र ही जायेगी उम्र-ए-रवाँ आहिस्ता आहिस्ता
अगरचे इल्म है, हम इक दम-ए-बेदम में रहते हैं