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कुछ चाल बाज़ ले उड़े पते ख़ुशियों से भरे ख़ज़ानों के / विनोद तिवारी

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कुछ चाल बाज़ ले उड़े पते ख़ुशियों से भरे ख़ज़ानों के
हमको तो केवल दर्द मिले अपनों के या बेग़ानों के

तुमने बाज़ारों में लाकर हर चीज़ सजा दी है लेकिन
अपनी तो जब भी नज़र उठी पट बन्द मिले दूकानों के

उगता है रोज़ नया जंगल बीमार अँधेरे सायों का
लेकिन आयोजन होते हैं नित सूर्य-जयी अभियानों के

हम बेकारों की बस्ती में रोज़ मसीहा आते हैं
आदर्शों के भाषण देने उपदेश लिए बलिदानों के

मैं महानगर के भीड़ भरे चौराहे पर आ बैठा हूँ
शायद मुझको मिल जाएँ यहाँ कुछ नक्श कहीं इन्सानों के