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कुछ नहीं आएगा हाथ हमारे / अरविन्द कुमार खेड़े

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जो भी सच है
भला या बुरा
ख़ुदा करे
इसी अँधेरे में दफ़न हो जाए ।

वर्ना टूटेगी हमारी धारणाएँ
और गुम हो जाएँगे हम इन अन्धेरों में ।
जी भी कहा-सुना गया है
अच्छा या बुरा
ख़ुदा करे
विसर्जित हो जाए
वर्ना जन्म देगा एक नए विमर्श को ।

अपनी तमाम बौद्धिकता को धता बताते हुए
कूद पड़ेंगे हम अखाड़े में ।
तुम अपना सच रख लो
मैं अपना झूठ रख लेता हूँ.
वर्ना इस नफ़े-नुक़सान के दौर में
कुछ नहीं आएगा हाथ हमारे…