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कुछ बला और कुछ सितम ही सही / इन्दिरा वर्मा

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कुछ बला और कुछ सितम ही सही
 इश्क़ में फ़ुर्क़त-ए-सनम ही सही

 जिस को चाहें उसे ख़ुशी दे दें
 मेरे हिस्से में उन के ग़म ही सही

 कितनी वीरान है सदाक़त भी
 बुत-कदा गर नहीं हरम ही सही

 मेरी ख़ुददारी-ए-वफ़ा देखो
 सर झुकाने से सर क़लम ही सही

 ज़िंदगी आज तेरा लुत्फ़ ओ करम
 कम अगर है तो आज कम ही सही

 जैसे मुमकिन हो बात रख लेना
 'इंदिरा' का ज़रा भरम ही सही