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कुछ सत्यों का रहस्योद्घाटन / मोहन अम्बर

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तुम विश्वास करो न करो पर, ये कुछ सत्य अमर होते है॥
जिनके घाव भले हों गीले
लेकिन भाव समय को कीले
अश्रु पसीने तर होते हों

उस पर भी जग-दुख धोते हों
तुम विश्वास करो न करो पर, ऐसे गीत गदर होते है।
ये कुछ सत्य अमर होते हैं॥
जिनमें नमन जलद से ज्यादा

जिनका रहन धूल से सादा
गलती से इतने डरते हों
चींटी की चिन्ता करते हों
तुम विश्वास करो न करो पर, ऐसे प्राण प्रवर होते हैं।

ये कुछ सत्य अमर होते हैं॥
जिनको थकन लगन लगती है
उनको चढ़न ढलन बनती है
जिनको शीश झुकाते पर्वत

जिनको मंज़िल लिखती हों खत
तुम विश्वास करो न करो पर, ऐसे पाँव डगर होते हैं।
ये कुछ सत्य अमर होते हैं॥
जिनके माथ अदागी बिंदिया

जो कहलाये पावन नदिया
तन काला हो पर मन गोरा
पिटता भी हो लाज ढिंढोरा
तुम विश्वास करो न करो पर, ऐसे रूप नज़र होते हैं।

ये कुछ सत्य अमर होते हैं॥
जहाँ परिश्रम का पूजन है
वहीं गुलाम सर्जन का मन है
जहाँ रोटियाँ बँट पाती हो

तरकारी घर-घर जाती हो
तुम विश्वास करो न करो पर, ऐसे गाँव नगर होते हैं।
ये कुछ सत्य अमर होते हैं॥