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कुरूक्षेत्र मे राधा / शिव कुमार झा 'टिल्लू'

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नवनीत अहाँ पतवार बनू एहि करूस सरोवर जीवन केॅ
ठिठुरल कदम्ब जमुना ठहरल सखी हँसी उडाओल अर्पण केॅ

आक्रांतित चहुँ दिशि सुमन तरू
विकल जड़ चेतन नभ धरती
जल बुन्न बनल घन घनन घटा
त्रासित राधा मन अछि परती

सत् असत कर्म बीचि घूमि रहल
सभ जनितो अहाँॅ अनजान बनल
भेंटत की जन संहाँरे सँ
अवला चित्कार आ नोर भरल

शापित करती ओ हिन्द सती
जनिक नाथ लुप्त भू आंचल सँ
संगहि करूणित वृन्दा- मथुरा
लेब पाप सभक युद्ध माॅचत जॅ

खोलू रण कर्मक डोरा डोरि
डुबू पीयूष राधा- रस मे
उत्ताप प्रेम तिल सुनगि रहल
नहि आब ई यौवन अछि वश मे