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कुल कामिनी / ‘हरिऔध’

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है तमतोम समान पापमय नयनों के हित।
है रवितनया सलिल उसे जो है अमलिन चित।
है पति चाव निमित्ता सुरस शृंगार सार वह।
उसे सेवार सुप्रीति सरसिका सकते हैं कह।
है आतंकित कर गरल मय पन्नग पोओंसे न कम।
पामर निमित्ता कुल कामिनी केश पाश है पाश सम।1।

उसका सुन्दर भाल कान्त कंचन फलकोपम।
अवगत होता है सुहाग लीलाथल के सम।
रजनी पति सुविभागसा विलसता है प्रति पल।
होता है अनुकूल भाग्य आलोक समुज्ज्वल।
वह छटअटा सुविशालता चारु चौहटा ही नहीं।
लीकों मिस उस पर चरित बल बरधाराएँ भी बहीं।2।

है मेहराब पुनीत भाव दर के अनुमानित।
दूज कलाधार के समान है जन सम्मानित।
वे हैं वह सुकमान बंकता जिनकी अनुपम।
कर देती है मदन कमान समाकुलता कम।
सब काल कदम करती रही लांछित लोचन की लसी।
कुल ललनाओं की भौंह द्वय झुकी युगल करवाल सी।3।

सलज्जता सरसि सरोरुह परम मुग्धा कर।
हैं सुशीलता रुचिर सरित के मीन मनोहर।
खंजन हैं कमनीय सदयता प्रान्तर विलसित।
प्रेमिकता वर विपिन कुरंगम हैं मोहक चित।
हैं निशित बिशिख सम वेधाते मलिन विचार बिहंग तन।
बहु पूत कलाओं के अयन कुल बालाओं के नयन।4।

है शुक चंचु समान कुतेवर फल कत्तान पटु।
चलचित अलिके लिए तिलकुसुम के सम है कटु।
है तू नीर स्वकीय क्रिया शायक चयधारी।
कामी जन की काम जनित वासना विदारी।
आनन छवि जल ऊँची लहर सकल सुवास विलासिका।
है तन गौरव गरिमा समा, कुल रमणी की नासिका।5।

हैं अति अनुपम सीप बर वचन मुक्ता धारी।
हैं शुचिरुचिमय राग कुसुम विलसित कल क्यारी।
हैं पावन जन चरित सुधा पीने के प्याले।
हैं वर स्वर लहरी विलास के विवर निराले।
हैं प्रभु की सुकथित कीर्ति के परम पुनीत विहार थल।
पति मधुर कथन रस सिक्त से कान कुल वधू के युगल।6।

है अति मंजुल मुकुर चिर महत्ता प्रतिविम्बित।
है राकापतिबिम्ब परम उज्ज्वल अकलंकित।
है गुलाब सुप्रसून भाव सौरभ विस्तारक।
मादक गोला है पुनीत मानस उपकारक।
है मधुमय कुसुम मधाूकर का पति मन मधाप विमुग्धा कर।
सुन्दर कपोल कुल नारिका है विधिा कृति कमनीय तर।7।

है बिम्ब फल लौं अपूत लोचन हित सगरल।
है विद्रुम लो अशुचि लहरियों के हित अतरल।
है लालोपम परम विमल आभा से विलसित।
जपा तुल्य अनुकूल वायु से है विकसित।
है रक्तिमाभ वंधूक सम विहित चित्ता अनुरक्ति कर।
आधार भूत मुख लालिमा कुल अबलाओं का अधार।8।

है चपला की चमक चपल जन चंचल दृगहित।
है मरीचिका मदन विमोहित मानस मृगहित।
है चाँदनी समान रजनि वत्सलता रंजिनि।
है स्वर्गीय मरीचि मोहतम मान विभंजिनि।
है उत्ताम धारा सुधा की अनुपम अधारोपरि लसी।
लोकोत्तार कान्ति सहोदरा है कुल महिला की हँसी।9।

है गंभीर विचार गगन विधु शुचिता अंकित।
है उत्फुल्ल सरोज मंजु आमोद गौरवित।
उच्च मानसिक भाव केलिथल है अति आला।
है कोमलता दया सदाशयता में ढाला।
है मुकुर प्रकृति प्रतिबिम्ब का सहज सरलता का सदन।
लोकोपकार आलोकमय कुल वनिताओं का वदन।10।