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कैसे निज़ात पाएं, हैं घात में शिकारी / डी .एम. मिश्र

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कैसे निज़ात पाएं, हैं घात में शिकारी
रहमो करम पे उनके है ज़िंदगी हमारी

ऐसी तो लूट पहले इस देश में नहीं थी
गोदाम भर रहे वो , हम हो रहे भिखारी

किस बात के हैं लेकिन हम लोग अन्नदाता
फांके पे कट रही है जब ज़िन्दगी हमारी
 
इस मयकदे में आकर , धोखे का जाम पीकर
हम चूर हैं नशे में टूटेगी कब ख़ुमारी

मर्कट भी नाचते हैं , दर्शक भी नाचते हैं
वश में सभी को रखता ऐसा है वो मदारी

ईश्वर के नाम पर भी भक्तों को लूटता है
कितना वो ढीट बंदा , कहने को है पुजारी